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बिलासपुर -“झूठे आरोप बने तलाक की वजह: बिना मेडिकल सबूत के पति पर नपुंसकता का आरोप, हाईकोर्ट ने माना मानसिक क्रूरता”

बिलासपुर। विवाह के चार साल बाद अलग हुए एक दंपती के बीच चल रही कानूनी लड़ाई का फैसला छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सुनाया है। यह मामला एक गंभीर सामाजिक संदेश भी छोड़ गया है — “बिना साक्ष्य लगाए गए झूठे आरोप, मानसिक प्रताड़ना के बराबर हैं।”

जांजगीर-चांपा निवासी युवक ने वर्ष 2013 में बलरामपुर की युवती से विवाह किया था। पति शिक्षा कर्मी था और बैकुंठपुर की एक कालरी में कार्यरत था, वहीं पत्नी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर कार्यरत थी। शादी के कुछ ही समय बाद पत्नी ने अपने कार्यक्षेत्र के आसपास ट्रांसफर कराने का दबाव बनाना शुरू कर दिया। स्थानांतरण न होने पर नौकरी छोड़ने की मांग की जाने लगी, जिससे दंपति के बीच लगातार तनाव बढ़ता गया।

सात साल का अलगाव और आरोपों की झड़ी

वर्ष 2017 से दोनों अलग-अलग रहने लगे। पति ने वर्ष 2022 में परिवार न्यायालय में विवाह विच्छेद के लिए याचिका दाखिल की। सुनवाई के दौरान पत्नी ने पति पर यौन अक्षमता का आरोप लगाते हुए उन्हें “नपुंसक” बताया, लेकिन जब कोर्ट ने सबूत मांगे, तो वह कोई मेडिकल रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं कर सकी।

पति ने जवाब में बताया कि पत्नी पहले भी उन पर पड़ोस की महिला के साथ अवैध संबंध होने का झूठा आरोप लगा चुकी है।

फैमिली कोर्ट ने की याचिका खारिज, हाईकोर्ट ने बदला फैसला

परिवार न्यायालय ने पत्नी के आरोपों को आधार मानते हुए पति की तलाक याचिका खारिज कर दी थी। लेकिन इस फैसले को पति ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। मामले की गहराई से सुनवाई के बाद छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने परिवार न्यायालय के आदेश को त्रुटिपूर्ण करार देते हुए खारिज कर दिया।

मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है झूठा आरोप: हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि –
“बिना किसी प्रमाणिक मेडिकल रिपोर्ट के किसी व्यक्ति पर नपुंसकता जैसे गंभीर आरोप लगाना न केवल मानहानिकारक है, बल्कि यह मानसिक प्रताड़ना की श्रेणी में आता है।”

कोर्ट ने माना कि पत्नी द्वारा लगाए गए बेबुनियाद आरोपों से पति का मानसिक संतुलन, आत्मसम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा प्रभावित हुई है, जो वैवाहिक जीवन को असहनीय बना देती है। इस आधार पर पति की तलाक याचिका मंजूर की गई।


यह फैसला उन सभी लोगों के लिए नजीर बन सकता है, जो बिना साक्ष्य के गंभीर आरोप लगाकर कानून का दुरुपयोग करते हैं। साथ ही यह भी बताता है कि अदालतें सिर्फ भावनाओं पर नहीं, तथ्यों और न्याय के आधार पर फैसला करती हैं।

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