
✍ सक्ती //जैजैपुर (विशेष रिपोर्ट) —
छत्तीसगढ़ के सक्ती ज़िले की जैजैपुर तहसील में इन दिनों प्रशासन की गैरहाजिरी से ग्रामीणों का सब्र टूटता जा रहा है। तहसीलदार मुख्यालय में दिखाई नहीं देते और गांवों में पटवारियों का अता-पता नहीं। इस बदहाल व्यवस्था का खामियाजा भुगत रहे हैं गरीब किसान, जो खेती-बाड़ी छोड़कर सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं।
⛔ “मुख्यालयों में ताले, कामकाज अधूरे – जिम्मेदार बेपरवाह!”
ग्रामीणों की मानें तो तहसील कार्यालय में तहसीलदार महीनों से दिखाई नहीं दे रहे। वहीं पटवारियों को सप्ताह में दो दिन—सोमवार और मंगलवार—अपने हल्का मुख्यालय पर बैठने का आदेश है, लेकिन इसका पालन ज़मीनी हकीकत में शून्य है। न कोई सूचना बोर्ड लगा है, न कोई समय सारिणी। किसान रोज़ पूछते हैं – “पटवारी कहां मिलेगा?” लेकिन जवाब किसी के पास नहीं।
🔥 कोटेतरा हल्के में हालात बद से बदतर!
हल्का कोटेतरा में नई पटवारी संगीता चंद्रा को जिम्मेदारी तो दे दी गई, लेकिन उन्होंने गांव में एक दिन भी डेरा नहीं डाला। अतिरिक्त प्रभार की आड़ में कोटेतरा की जनता को बेसहारा छोड़ दिया गया है। सरपंच से लेकर जनप्रतिनिधि तक जवाब देते-देते थक चुके हैं, लेकिन पटवारी की उपस्थिति सिर्फ कागजों तक सीमित है।
“हम कहां जाएं? पटवारी नहीं मिलते, तहसीलदार भी नहीं! ऐसे में छोटे-छोटे कागज़ात बनवाने के लिए 5-6 चक्कर लगाने पड़ते हैं…”
— एक परेशान किसान, कोटेतरा से
📢 प्रशासनिक चुप्पी पर उठ रहे सवाल
सबसे बड़ा सवाल यह है कि राजस्व विभाग के उच्चाधिकारी सब कुछ जानते हुए भी चुप क्यों हैं? क्या यह प्रशासनिक उदासीनता नहीं, जनता के साथ अन्याय है? जिन सरकारी कर्मचारियों को जनता की सेवा के लिए वेतन मिलता है, वे जनता से मुंह मोड़कर सिस्टम का मज़ाक बना रहे हैं।
📣 ग्रामीणों का अल्टीमेटम: अब आंदोलन तय!
ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही व्यवस्था नहीं सुधरी, तो वे सामूहिक रूप से तहसील कार्यालय का घेराव करेंगे। शासन से मांग की जा रही है कि अनुपस्थित अधिकारियों पर कार्रवाई हो, जवाबदेही तय हो और ग्रामों में सेवा बहाल की जाए।
🛑 अब जरूरी है — प्रशासन जागे, जनता को राहत मिले!
सरकार गांवों में राजस्व शिविर चलाकर लोगों को राहत देना चाहती है, लेकिन जब ज़मीनी कर्मचारी ही गैरहाज़िर हों, तो नीति सिर्फ कागज़ पर रह जाती है। जैजैपुर की यह स्थिति सिर्फ एक तहसील की नहीं, बल्कि एक बड़ी व्यवस्था के गिरते भरोसे की तस्वीर बन चुकी है।
📌 यह सिर्फ एक खबर नहीं, गांव की आवाज़ है — क्या शासन सुनेगा?



