
बिलासपुर | विशेष रिपोर्ट
छत्तीसगढ़ के शिक्षा विभाग में उस समय सनसनी फैल गई जब रिश्वतखोरी के गंभीर आरोपों से घिरे विजय टांडे को बिलासपुर जिले का जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) नियुक्त कर दिया गया। यह वही अधिकारी हैं जिन्हें कुछ महीने पहले तत्कालीन कलेक्टर अवनीश शरण ने कोटा विकासखंड के बीईओ पद से विधवा शिक्षिका से रिश्वत मांगने के आरोप में हटा दिया था और उनके खिलाफ विभागीय जांच के निर्देश दिए गए थे।
शिक्षकों के व्हाट्सएप ग्रुप में वायरल हो रहे पुराने घोटालों के दस्तावेज
विजय टांडे की डीईओ पद पर नियुक्ति की खबर आते ही शिक्षकों के व्हाट्सएप ग्रुप में पुराने भ्रष्टाचार से जुड़ी फाइलें और दस्तावेज वायरल होने लगे हैं। शिक्षकों और विभाग के अंदरखाने में इस नियुक्ति को लेकर जबरदस्त नाराजगी और सवाल उठ रहे हैं कि जिस अधिकारी पर जांच लंबित है, उसे आखिर इतनी बड़ी जिम्मेदारी कैसे दी जा सकती है?
क्या है पूरा मामला?
विधवा शिक्षिका नीलम भारद्वाज, जिनके पति पुष्कर भारद्वाज शासकीय स्कूल पोड़ी में शिक्षक पद पर कार्यरत थे, उनकी मृत्यु के बाद लंबित स्वत्व और अर्जित अवकाश की राशि के भुगतान के लिए उन्होंने कई बार आवेदन दिया। शिकायत के अनुसार, विजय टांडे और उनके लिपिक एकादशी पोर्ते ने भुगतान के एवज में 1.34 लाख रुपये की रिश्वत की मांग की।
इस गंभीर आरोप की शिकायत 3 मार्च 2025 को जनदर्शन में खुद कलेक्टर अवनीश शरण से की गई, जिसके बाद तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की गई थी। मगर अब तक जांच की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है और न ही किसी सजा या कार्रवाई की जानकारी दी गई है।
सरकार की चुप्पी पर उठे सवाल
शिक्षकों का आरोप है कि विजय टांडे की नियुक्ति से यह साफ संकेत मिलता है कि सरकार दागी अधिकारियों को संरक्षण दे रही है, जिससे ईमानदार और योग्य अधिकारियों के मनोबल पर असर पड़ता है।
क्या कहते हैं शिक्षा से जुड़े लोग?
- “ऐसे अधिकारी को प्रमोट करना शिक्षा तंत्र के लिए खतरे की घंटी है। सरकार को तुरंत इस फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।” – एक वरिष्ठ शिक्षक संगठन पदाधिकारी
- “जांच लंबित होने के बावजूद पोस्टिंग देना पूरी प्रक्रिया को मज़ाक बनाता है।” – पूर्व प्रशासनिक अधिकारी
निष्कर्ष:
इस नियुक्ति से एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं कि क्या छत्तीसगढ़ में ईमानदारी की जगह ‘मैनेजमेंट’ ने ले ली है? अगर दागी अफसरों को पदोन्नति मिलती रही तो सरकारी तंत्र में बैठे भ्रष्ट लोगों को खुली छूट मिलती रहेगी और आम जनता को न्याय मिलना मुश्किल हो जाएगा।
👉 क्या सरकार इस फैसले पर पुनर्विचार करेगी या यह भी एक फाइल बनकर दब जाएगी?



